I think, therefore I am.
/aɪ θɪŋk ˈðɛrˌfɔr aɪ æm/
I think, therefore I am.
/aɪ θɪŋk ˈðɛrˌfɔr aɪ æm/
रेने देकार्त, जिन्होंने "मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ" का नारा दिया, उन्होंने इसे १६३७ में अपने ग्रन्थ 'ध्यान' में प्रस्तुत किया था। यह विचार मानव अस्तित्व और चेतना की स्वतंत्रता का प्रतीक है। देकार्त का यह सिद्धांत आत्म-साक्षात्कार और दार्शनिक दृष्टिकोण से ज्ञान की खोज में एक महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। उनके इस सिद्धांत ने वैज्ञानिक क्रांति के दौरान सोचने के नए तरीके प्रदान किए और आधुनिक दार्शनिक चिंतन की नींव रखी। देकार्त का मानना था कि सच्चाई और ज्ञान के लिए आत्म-साक्षात्कार जरूरी है, और इस प्रक्रिया से व्यक्ति की सोच विकसित होती है और वह अधिक सचेत और जागरूक होता है। इसलिए उनका यह कथन नागरिकता, शिक्षा, और व्यक्तिगत विकास के क्षेत्रों में भी प्रेरणास्रोत माना जाता है।
René Descartes
रेने देकार्त
Philosopher and Mathematician
फ्रांसीसी दार्शनिक
Meditations on First Philosophy, 1641
रेने देकार्त का यह उद्धरण उनकी दार्शनिक सोच को व्यक्त करता है, जो उन्होंने अपने ग्रंथ "ध्यान" में प्रकट किया था।